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वैशाली
वैशाली आज केले और आम के पेड़ों के साथ ही चावल के खेतों से घिरा हुआ एक छोटा सा गाव है, लेकिन क्षेत्र मे खुदाई एक प्रभावशाली एतिहासिक अतीत प्रकाश मे लाया है | महाकाव्य रामायण यहाँ शाशण करने वेल वीर राजा विशाल की कहानी कहता है |इतिहासकारों के अनुसार प्रतिनिधियों की एक निर्वाचित विधानसभा के साथ दुनियाँ के पहले लोकतांत्रिक गणराज्यों मे से एक वज्जी और लीच्छवी 6ठा शताब्दी ई० पू० मे यहाँ स्थापित हुआ | पाटलिपुत्र ने मौर्या और गुप्तों की राजधानी के रूप मे गंगा के मैदान के उपर राजनीतिक अधिपत्य बनाए रखा| वहीं वैशाली व्यापार और उद्धोग के लिए केंद्र था |
भगवान बुद्ध ने अक्सर वैशाली का दौरा किया और कोल्हुआ पर जोआ पास मे है मे नुका अंतिम नूदेश हुआ | इसकी याद मे तीसरी सदी ई० पू० मे सम्राट अशोक ने प्रसिद्ध शेर स्तंभों मे से एक बनवाया | महापरिनिर्वाण के एक सौ साल बाद, वैशाली ने दूसरी महान बौद्ध परिषद की मेजबानी की | दो स्तूप की घटना की स्मृति मे बनवाए गये थे | वैशाली ज़ायनियों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थल है क्योंकि यही 527ई०पू० मे, भगवान महावीर शहर के बाहरी इलाक़े मे पैदा हुए थे और 22 वर्ष की उम्र तक यहीं रहे थे | वैशाली तभी से बौद्ध और जैनियो दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बना हुआ है तथा अतीत के लिए इतिहासकारों को भी आकर्षित करता है| वैशाली के सरहद पर भव्य दो मंज़िला बौद्ध मथ खड़ा था | बुद्ध यहाँ अक्सर प्रवचन देते थे | उन्होंने अपने पवित्र आदेश में आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग महिलाओं के लिए भी प्रवचन मे शामिल करके खोल दिया | भगवान बुद्ध की अपनी यात्राओं मे से एक पर कई बद्रों ने उनके आराम से रहने के लिए एक टैंक खोदा और उन्हें शहद के एक कटोरा की पेशकश की | यह घटना भगवान बुद्ध के जीिवान की महान घटनाओं मे से एक मानी जाती है जिन्होंने अपने निर्वाण की घोषणा करते हुआ अपना उपदेश यहाँ दिया | लीच्छवी लंबी रास्ता चलकर उन्हें कूशीनगर के रास्ते पर विदाई देने आए, वे बुद्ध के द्वारा बनाई गई एक नदी द्वारा रोक दिए गए| उन्होंने एक बार फिर रूककर अपने प्यारे शहर को एक अंतिम विदाई दी | वैशाली के लिए एक धर्मपरायण के रूप मे उन्होंने अपने भीख का कटोरा दिया था जो यहाँ लंबे समय तक रहा | कोल्हूआ मे एक ईंट स्तूप के बगल मे एक आदमकद स्तंभ बुद्ध के अंतिम उपदेश और उनकी निर्वाण की घशना का स्मारक है | शेर के चेहरे की उतर दिशा, बुद्ध के अंतिम यात्रा कों दर्शाता है | इस से सटा टैंक शहद की पेशकश करनेवाले बंदरों के साथ जूड़ा है | इसके निकट मे ही एक मठ है जयन बुद्ध रहते थे वहाँ उनके कन्काल अवशेष है जिसपर एक मन्नत स्तूप है |
वैशाली संग्रहालय में यहाँ खोजे गये पुरातात्विक अवशेष रखे गये हैं | इस संग्रहालय के सामने अभिषेक पुष्करणी है जो लीच्छवियों के लिए पवित्र थी| इसके एक तरफ नवनिर्मित विश्व शांति स्तूप है जो भारत में एसे निर्माणों की श्रंखला में छठा है| संग्रहालय के निकट छायांकित स्तूप है जिसके बारे में मान्यता है कि इसमें बुध की राख युक्त मंजूषा अवशेष रखे गये हैं|
पुरातत्वविदों ने वैशाली के अतीत की अच्छी खोज की है | यह एक विशाल टीले से शुरू होता है जो राजा विशाल का गढ़ कहलाता है प्राचीन संसद से जोड़ा जाता है | भवन पोखर मंदिर में गुप्त और पालकालीन काले बेसाल्ट पत्थरों से बने छवियों का स्मिर्ध संग्रह है| काले बेसाल्ट पत्थर से बनी एक सीवलिंग (चौमुखी महादेव) की खोज हुई जब जलाशय की खुदाई हो रही थी | भवन पोखर मंदिर के पीछे एक जैन मंदिर है जो तीर्थकर की मूर्ति के लिए मशहूर है| इन मंदिरों से थोड़ी दूरी पर लोटस तलब है जो लीच्छवियों के लिए पिकनिक स्थल था |
इसके उतर में मोतिहारी से 31 कि0मी0 दूर, लौरिया अरेराज में एक अशोक स्तंभ जिसमें छः लेख है | स्तंभ शीर्ष से रहित है | एक अन्य अशोक स्तंभ जिसपर शेर की मूर्ति बनी है बनी है नंदनगढ़ में है जो बेतिया से 23 कि0 मी0 की दूरी पर है | ये स्तंभ संभवतः उस रास्ते की पहचान कराते हैं जो प्राचीन समय में राजकीय राजमार्ग के रूप में पाटलिपुत्र से नेपाल की घाटी जाता था| नंदनगढ़ के एकाशमक स्तंभ से कुछ कि0मी0 की दूरी पर एक इंट से निर्मित स्तूप है जिसके बारे में मान्यता है कि इसके नीचे बुध की राख युक्त मंजूषा अवशेष संग्रहित है| नंदनगढ़ में दर्जनों वैदिक टीले देखे जा सकते हैं जिनमें बुध के पूर्व के शासकीय राजवशों के अवशेष सूरक्षित हैं |
सामान्य जानकारी
1.     उँचाई -52 मी0 (समुद्र तल से )
2.     तापमान (अधिकतम/न्यूनतम) डिग्री सेल्सियस में -गर्मियों में 44/21
3.     औसत वर्षा - 120 से0मी0
4.     बेहतर मौसम- अक्टूबर से मार्च
क्या देखें
अशोक के स्तंभ: सम्राट अशोक ने कोल्हुआ में शेर के शीर्ष वाले स्तंभ का निर्माण किया | यह लाल बलुआ पत्थर की एक उच्य पालिश युक्त एकाशमक स्तंभ है जिसका शीर्ष घंटी के आकर का है | शेर की एक आदमकद मूर्ति स्तंभ के शीर्ष पर रखी गयी है | यहां एक छोटा तालाब है जिसे रामकुंड के रूप में जाना जाता है | यह स्तंभ कोल्हुआ स्थित इंट स्तूप के पास है जो बुध के अंतिम उपदेश का स्मारक है |
भवन पोखर मंदिर: पाल कालीन बनाया गया एक पुराना मंदिर भवन पोखर के उतरी तट पर खड़ा है जिसमें कई हिंदू देवताओं के सुंदर चित्र रखे हुए हैं |
बुध स्तूप : इस स्तूप के बाहरी सतह सादे हैं जो अब जीर्ण हालत में हैं, भगवान बुध के पवित्र राख में से 1/8 वें हिस्से को एक पत्थर की मंजूषा में रखे गए हैं|
अशोक के स्तंभ: सम्राट अशोक ने कोल्हुआ में शेर के शीर्ष वाले स्तंभ का निर्माण किया | यह लाल बलुआ पत्थर की एक उच्य पालिश युक्त एकाशमक स्तंभ है जिसका शीर्ष घंटी के आकर का है | शेर की एक आदमकद मूर्ति स्तंभ के शीर्ष पर रखी गयी है | यहां एक छोटा तालाब है जिसे रामकुंड के रूप में जाना जाता है | यह स्तंभ कोल्हुआ स्थित इंट स्तूप के पास है जो बुध के अंतिम उपदेश का स्मारक है |
अन्य आकर्षण
वैशाली महोत्सव वैशाली महोत्सव "Vaisakh" (मध्य अप्रैल ) के महीने की पूर्णिमा के दिन जैन तीर्थकर भगवान महावीर की जयंती मानने के लिए आयोजित किया जाता है |
सोनपुर मेला: (35 कि0मी0) सोनपुर, नदी गंगा और गंडक के संगम पर स्थित है, शायद एशिया की सबसे बड़े पशु मेले का मेजबान है | यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के दिन (अक्टूबर /नवम्बर ) से लगभग एक पखवाड़े के लिए रहता है | लाखों आगंतुक इस विशिष्ट मेले में आते हैं | बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम सोनपुर मेले की अवधि के दौरान आस्थाई रूप से बनवाया गया स्विस कॉटेज, संलग्न स्नानघर के साथ पर्यटक गाँव में प्रदान करता है|
अशोक के स्तंभ: सम्राट अशोक ने कोल्हुआ में शेर के शीर्ष वाले स्तंभ का निर्माण किया | यह लाल बलुआ पत्थर की एक उच्य पालिश युक्त एकाशमक स्तंभ है जिसका शीर्ष घंटी के आकर का है | शेर की एक आदमकद मूर्ति स्तंभ के शीर्ष पर रखी गयी है | यहां एक छोटा तालाब है जिसे रामकुंड के रूप में जाना जाता है | यह स्तंभ कोल्हुआ स्थित इंट स्तूप के पास है जो बुध के अंतिम उपदेश का स्मारक है |
कला और शिल्प: वैशाली के आसपास कई गाँव के लोग खूबसूरत घरेलू निर्मित खिलौना बनाते हैं जिसे सिक्की कार्य कहते हैं जैसे बांस से बनी सुंदर टोकरियाँ और लाख की चूड़ीयां आदि | ये हस्त निर्मित लाख की चूड़ीयां पास के शहर मुजफ्फरपुर से आती हैं|
कैसे पहुँचें
वायुमार्ग - - नज़दीक हवाई अड्डा पटना (7 कि0मी0 की दूरी ) में है |
रैलमार्ग- उतरी -पूर्व रेलवे का हाजीपुर स्टेशन (35 कि0मी0 )और मुजफ्फरपुर स्टेशन (40 कि0मी0 )
सड़क मार्ग- पटना (56 कि0मी0 ) मुजफ्फरपुर (36 कि0मी0 ) और हाजीपुर (35 कि0मी0 ) से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है |
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