पिन्डदान
हिंदू मान्यता के अनुसार मृत्यु के उपरांत भी मानवों की आत्मा इस भौतिक संसार में ही रहती है |केवल शरीर के क्षय से (मृत्यु के कारण) व्यक्ति अपने आप को इस संसार से अलग नहीं कर पाता | अपने परिवार, मित्रों एवं रिश्तेदारों आदि के प्रति प्रेम, करुणा व आकर्षण के बंधन और भौतिक जगत के प्रति आकर्षण का परिणाम होता है कि आत्मा अपनी अंतिम मोक्षदायिनी यात्रा पर नहीं निकल पाती है | इसका परिणाम होता है कि आत्मा बिना शरीर के दुख: पाती रहती है | वह बहुत सारे कार्य करना चाहती है लेकिन कर नहीं पाती न तो स्वंय को और यहाँ तक किअपनी इच्छा सेभी वे अपने आपको इस भौतिक जगत से मुक्त करा पाती हैं | हिंदू मान्यता के अनुसार पिंडदान उन्हें पर्मराहत प्रदान करती है और उनके लिए मुक्ति का रास्ता खोलती है कि वे शांति की चरम सीमा वाले संसार में पहुँचकर मोक्ष पा सके|
गया पिंडदान के लिए अती पवित्र स्थल है| पिंडों को व्यक्तिगत रूप से अपनी ओर से भगवान विष्णु के चरण चिन्हों को समर्पित किया जाता है| अक्षयवट और फल्गु नदी के किनारे विहित हिंदू परम्पराओं का समुचित निर्वहन करते हैं ताकि अंतिम यात्रा पर निकली मृत ब्यक्ति की आत्मा हमेशा के लिए शांति के संसार में विश्राम कर सके| कई बार ऐसा होता है कि किसी की अकाल मृत्यु, किसी दुर्घटना, आत्म हत्या, की वजह से हो गई हो तो उसकी अतृप्त आत्मा अलौकिक विश्व की ओर नहीं जा पाती है और मुक्ति नहीं प्राप्त कर पाती है| ऐसी आत्मा इस भौतिक जगत में बार –बार वापस आती रहती हैं और कई बार लोगों को कई प्रकार से भयभीत करने का प्रयास करती हैं|
गया श्राद्ध के विशेष दिवस
पिंडदान पूरे वर्ष में कभी भी किया जा सकता है परंतु गया श्राद्ध या गया पिन्डदान के विशेष 18 दिनों के पितृपक्ष मेले के दौरान या किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष में 7 दिनों, 3 दिनों, या 1 दिन की अमावस्या के दौरान किया जाना बेहतर हैं | 18 दिनों के विशेष पितृपक्ष श्राद्ध या मेला के दौरान अपने पूर्वजों या परिवार के किसी भी मृत सदस्य का पिन्डदान सबसे बेहतर माना जाता है | ये विशेष 18 दिवस हर वर्ष सितंबर या अक्तूबर के महीने में आते हैं | पितृपक्ष मेले के दौरान लगभग 10 लाख से 15 लाख तक तीर्थ यात्री गया जी श्राद्ध या पिंडदान के लिए गया आते हैं | वैसे पिन्डदान यहाँ वर्ष भर होता रहता है | यहाँ 360 प्लेटफॉर्म हैं जहाँ गेहूँ और जौ के आटे में सूखे दूध को मिलाकर पिंडदान किया जाता है | पिंडदान प्रतीकात्मक रूप से कीचड़ की गेंदों से भी किया जाता है | वर्तमान में विष्णु मंदिर , अक्षयवट ,फल्गु और पुनपुन नदी, रामकुंड, सीताकुंड, ब्रम्हमगलपुरी, कागबली और पाँच तीर्थस्थान जो मिलकर 48 प्लेटफॉर्म बनाते है, में किया जाता है |